यादों में याद रखना" जब क़िस्मत को ही , मंज़ूर नही | हिंदी शायरी V

"यादों में याद रखना" जब क़िस्मत को ही , मंज़ूर नहीं है, मिलना जुलना अपना, फिर कुछ नहीं हो सकता, चाहे कोई किसी को चाहे ले कितना। अजनबी बनकर के जा रहे हो जाओ, मगर, मुड़ के देखने के लिए मत पलटना, गरीब दिल की इक गुज़ारिश है आपसे ,हो सके तो हमें यादों में याद रखना। ©Anuj Ray "

यादों में याद रखना" जब क़िस्मत को ही , मंज़ूर नहीं है, मिलना जुलना अपना, फिर कुछ नहीं हो सकता, चाहे कोई किसी को चाहे ले कितना। अजनबी बनकर के जा रहे हो जाओ, मगर, मुड़ के देखने के लिए मत पलटना, गरीब दिल की इक गुज़ारिश है आपसे ,हो सके तो हमें यादों में याद रखना। ©Anuj Ray

# यादों में याद रखना"

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