जो मेरे तसब्बुर में भी, कल्प रहा। वो शख् | हिंदी शायरी

"जो मेरे तसब्बुर में भी, कल्प रहा। वो शख्स हमेशा मेरा, अल्प रहा। और ख्वाहिश तो यूं थी कि उम्र गुजारूं साथ उसके— मगर, अफसोस! मैं तो हमेशा उसका, विकल्प रहा। ©Mohit Singhaniya"

 जो   मेरे   तसब्बुर   में  भी,  कल्प रहा।
वो   शख्स  हमेशा  मेरा,  अल्प  रहा।
और ख्वाहिश तो यूं थी कि उम्र गुजारूं साथ उसके—
मगर, अफसोस! मैं तो हमेशा उसका, विकल्प रहा।

©Mohit Singhaniya

जो मेरे तसब्बुर में भी, कल्प रहा। वो शख्स हमेशा मेरा, अल्प रहा। और ख्वाहिश तो यूं थी कि उम्र गुजारूं साथ उसके— मगर, अफसोस! मैं तो हमेशा उसका, विकल्प रहा। ©Mohit Singhaniya

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