सुन कभी ऐ तक़दीर मेरी
कमियों को मेरी, अब उलाहने सरेआम न दे,
तूने भी चुना था मुझे, सिर्फ़ मुझे इल्ज़ाम न दे,
हो रहा हूँ बर्बाद मैं, तेरे बताए रास्ते पर चलकर,
बेचारगी ही दिखे, इस सफ़र को वो आयाम न दे,
माना कि ख़्वाब सजाना, तुझसे ही सीखा है मैंने,
दिल को चुभें जो ताउम्र, उन टुकड़ों का इनाम न दे,
न कुछ आस लगाई तूझसे साथ निभाने के अलावा,
नाराज़गी में मत ले फ़ैसले इस रिश्ते को क़याम न दे,
सौ हार पर, एक जीत तो मेरे के नाम कर, ऐ तक़दीर,
ज़ख्मी रूह को “साकेत" के, भले कभी आराम न दे।
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©Saket Ranjan Shukla
सुन कभी ऐ तक़दीर मेरी.!
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✍🏻Saket Ranjan Shukla
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