सुन कभी ऐ तक़दीर मेरी कमियों को मेरी, अब उलाहने स | हिंदी कविता

"सुन कभी ऐ तक़दीर मेरी कमियों को मेरी, अब उलाहने सरेआम न दे, तूने भी चुना था मुझे, सिर्फ़ मुझे इल्ज़ाम न दे, हो रहा हूँ बर्बाद मैं, तेरे बताए रास्ते पर चलकर, बेचारगी ही दिखे, इस सफ़र को वो आयाम न दे, माना कि ख़्वाब सजाना, तुझसे ही सीखा है मैंने, दिल को चुभें जो ताउम्र, उन टुकड़ों का इनाम न दे, न कुछ आस लगाई तूझसे साथ निभाने के अलावा, नाराज़गी में मत ले फ़ैसले इस रिश्ते को क़याम न दे, सौ हार पर, एक जीत तो मेरे के नाम कर, ऐ तक़दीर, ज़ख्मी रूह को “साकेत" के, भले कभी आराम न दे। IG :— @my_pen_my_strength ©Saket Ranjan Shukla"

 सुन कभी ऐ तक़दीर मेरी

कमियों को मेरी, अब उलाहने सरेआम न दे,
तूने भी चुना था मुझे, सिर्फ़ मुझे इल्ज़ाम न दे,

हो रहा हूँ बर्बाद मैं, तेरे बताए रास्ते पर चलकर,
बेचारगी ही दिखे, इस सफ़र को वो आयाम न दे,

माना कि ख़्वाब सजाना, तुझसे ही सीखा है मैंने,
दिल को चुभें जो ताउम्र, उन टुकड़ों का इनाम न दे,

न कुछ आस लगाई तूझसे साथ निभाने के अलावा,
नाराज़गी में मत ले फ़ैसले इस रिश्ते को क़याम न दे,

सौ हार पर, एक जीत तो मेरे के नाम कर, ऐ तक़दीर,
ज़ख्मी रूह को “साकेत" के, भले कभी आराम न दे।

IG :— @my_pen_my_strength

©Saket Ranjan Shukla

सुन कभी ऐ तक़दीर मेरी कमियों को मेरी, अब उलाहने सरेआम न दे, तूने भी चुना था मुझे, सिर्फ़ मुझे इल्ज़ाम न दे, हो रहा हूँ बर्बाद मैं, तेरे बताए रास्ते पर चलकर, बेचारगी ही दिखे, इस सफ़र को वो आयाम न दे, माना कि ख़्वाब सजाना, तुझसे ही सीखा है मैंने, दिल को चुभें जो ताउम्र, उन टुकड़ों का इनाम न दे, न कुछ आस लगाई तूझसे साथ निभाने के अलावा, नाराज़गी में मत ले फ़ैसले इस रिश्ते को क़याम न दे, सौ हार पर, एक जीत तो मेरे के नाम कर, ऐ तक़दीर, ज़ख्मी रूह को “साकेत" के, भले कभी आराम न दे। IG :— @my_pen_my_strength ©Saket Ranjan Shukla

सुन कभी ऐ तक़दीर मेरी.!
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