मां का सप्तम रूप है मां कालरात्रि का,
क्षण में करती नाश दुष्ट,दैत्य, दानव का।
स्मरणमात्र से भाग जाते भूत, प्रेत, निशाचर,
उज्जैन से दूर हो जाते हैं पल में ग्रह-बाधा हर।
उपवासकों को नहीं भय अग्नि, जल, जंतु का,
नहीं होता है भय कभी भी रात्रि या शत्रु का।
नाम की तरह रुप भी है अंधकार-सा काला,
त्रिनेत्रधारी है माताजी सवारी है गर्दभ का।
दाहिना हाथ ऊपर उठा रहता है वरमुद्रा में,
बाया हाथ नीचे की ओर है अभय मुद्रा में।
तीसरे हाथ में मां के है खड्ग, चौथे में लौहशस्त्र,
विशेष पूजा रात्रि में मां की करते हैं तंत्र साधक।
शुभकारी है दूसरा नाम मां कालरात्रि का,
शुभ करने वाली है मां, है सबकी मान्यता।
गुड़हल का पुष्प है प्रिय, गुड़ का भोग लगाते हैं,
कपूर या दीपक जलाकर मां की आरती करते हैं।
©Shivkumar
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