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पता नहीं क्या चल रहा है ज़िंदगी में मेरी
आखिर कौन सा पड़ाव है ये मेरी ज़िन्दगी का
खत्म नहीं होते कभी अंधेरे ज़िंदगी से मेरे
लगता है जैसे कितनी ज़िंदगी में जी लिया
आखिर क्यों इतना दर्द है मेरी ज़िन्दगी में
मैंने कभी किसी के लिए कुछ बुरा नहीं किया
तूने जो भी दिया मैंने कबूल किया हंसकर
दिखावे का हंसना भी तो कसूर हो गया
बता तो सही एक दफा मेरा कसूर क्या है।
तू क्यों इतना मेरे लिए कठोर हो गया ।
क्यों बना कर पत्थर छोड़ दिया तूने मुझे।
तेरे अलावा तो मेरा यहां कोई नहीं था ।
मेरी उदासी का कारण में खुद नहीं जानता
©Vickram
#Night आखिर मेरा कसूर क्या है