पाठशाला चलो बचपन की कुछ याद ताजा करते हैं चलो फिर | हिंदी कविता

"पाठशाला चलो बचपन की कुछ याद ताजा करते हैं चलो फिर पाठशाला चलती है बहुत याद आती है अपनी पाठशाला लिए हाथ श्यामपट्ट, पेंसिल और पहाड़ा कराए गुरुओं ने याद हिंदी वर्णमाला बहुत याद आती है अपनी पाठशाला अ से ज्ञ 52 का फैसला गुरु की डांट से सब पार कर डाला 1 से 100 तक की गिनती याद हो जाए, करते थे ईश्वर से विनती उल्टी-सीधी रटते थे गिनती बरम खेड़ी होती थी त्रुटि कान पकड़ना, दंड-बैठक वाली मस्ती बनाकर मुर्गा, पिछवाड़े पर डंडे थी पड़ती बहुत याद आती है अपनी पाठशाला लिए हाथ श्यामपट्ट, पेंसिल और पहाड़ा वह गिरना, गिर कर उठना और गिर गिर कर संभलना वह लड़ना, वह झगड़ना एक उंगली से कट्टी, फिर मिलकर आगे बढ़ना बहुत याद आती है अपनी पाठशाला लिए हाथ श्यामपट्ट पेंसिल और पहाड़ा पाठशाला की 15 अगस्त और 26 जनवरी की सफाई वो बूंदी, लड्डू और मिठाई सुबह-सुबह प्रार्थना की घंटी वह सामूहिक व्यायाम वाली मस्ती बहुत याद आती है अपनी पाठशाला लिए हाथ श्यामपट्ट, पेंसिल और पहाड़ा वो टाट पट्टी की लंबी पंक्ति वाली आसन कागज की पर्ची में, चोर, पुलिस, राजा का सिंहासन(खेल) वो पेंसिल जीत, मध्यान भोजन की स्वादिष्ट खीर बहुत याद आती है अपनी पाठशाला लिए हाथ श्यामपट्ट पेंसिल और पहाड़ा। ©mr.Kavi Verma"

 पाठशाला
चलो बचपन की कुछ याद ताजा करते हैं
चलो फिर पाठशाला चलती है
बहुत याद आती है अपनी पाठशाला
लिए हाथ श्यामपट्ट, पेंसिल और पहाड़ा
कराए गुरुओं ने याद हिंदी वर्णमाला
बहुत याद आती है अपनी पाठशाला
अ से ज्ञ 52 का फैसला
गुरु की डांट से सब पार कर डाला
1 से 100 तक की गिनती
याद हो जाए, करते थे ईश्वर से विनती
उल्टी-सीधी रटते थे गिनती
बरम खेड़ी होती थी त्रुटि
कान पकड़ना, दंड-बैठक वाली मस्ती
बनाकर मुर्गा, पिछवाड़े पर डंडे थी पड़ती
बहुत याद आती है अपनी पाठशाला
लिए हाथ श्यामपट्ट, पेंसिल और पहाड़ा
वह गिरना, गिर कर उठना
और गिर गिर कर संभलना
वह लड़ना, वह झगड़ना
एक उंगली से कट्टी, फिर मिलकर आगे बढ़ना
बहुत याद आती है अपनी पाठशाला
लिए हाथ श्यामपट्ट पेंसिल और पहाड़ा
पाठशाला की 15 अगस्त और 26 जनवरी की सफाई
वो बूंदी, लड्डू और मिठाई
सुबह-सुबह प्रार्थना की घंटी
वह सामूहिक व्यायाम वाली मस्ती
बहुत याद आती है अपनी पाठशाला
लिए हाथ श्यामपट्ट, पेंसिल और पहाड़ा
वो टाट पट्टी की लंबी पंक्ति वाली आसन
कागज की पर्ची में, चोर, पुलिस, राजा का सिंहासन(खेल)
वो पेंसिल जीत, मध्यान भोजन की स्वादिष्ट खीर
बहुत याद आती है अपनी पाठशाला
लिए हाथ श्यामपट्ट पेंसिल और पहाड़ा।

©mr.Kavi Verma

पाठशाला चलो बचपन की कुछ याद ताजा करते हैं चलो फिर पाठशाला चलती है बहुत याद आती है अपनी पाठशाला लिए हाथ श्यामपट्ट, पेंसिल और पहाड़ा कराए गुरुओं ने याद हिंदी वर्णमाला बहुत याद आती है अपनी पाठशाला अ से ज्ञ 52 का फैसला गुरु की डांट से सब पार कर डाला 1 से 100 तक की गिनती याद हो जाए, करते थे ईश्वर से विनती उल्टी-सीधी रटते थे गिनती बरम खेड़ी होती थी त्रुटि कान पकड़ना, दंड-बैठक वाली मस्ती बनाकर मुर्गा, पिछवाड़े पर डंडे थी पड़ती बहुत याद आती है अपनी पाठशाला लिए हाथ श्यामपट्ट, पेंसिल और पहाड़ा वह गिरना, गिर कर उठना और गिर गिर कर संभलना वह लड़ना, वह झगड़ना एक उंगली से कट्टी, फिर मिलकर आगे बढ़ना बहुत याद आती है अपनी पाठशाला लिए हाथ श्यामपट्ट पेंसिल और पहाड़ा पाठशाला की 15 अगस्त और 26 जनवरी की सफाई वो बूंदी, लड्डू और मिठाई सुबह-सुबह प्रार्थना की घंटी वह सामूहिक व्यायाम वाली मस्ती बहुत याद आती है अपनी पाठशाला लिए हाथ श्यामपट्ट, पेंसिल और पहाड़ा वो टाट पट्टी की लंबी पंक्ति वाली आसन कागज की पर्ची में, चोर, पुलिस, राजा का सिंहासन(खेल) वो पेंसिल जीत, मध्यान भोजन की स्वादिष्ट खीर बहुत याद आती है अपनी पाठशाला लिए हाथ श्यामपट्ट पेंसिल और पहाड़ा। ©mr.Kavi Verma

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