पर्वत की ऊची चोटी पे, जब हरियाली छाती है। नई नवेली

"पर्वत की ऊची चोटी पे, जब हरियाली छाती है। नई नवेली दुल्हन मानो, पिय से मिल शर्माती है। कारे बदरा बने ओढ़नी, जब चोटी पर छाते है। झरझर करके बहते झरने, मल्हारें तब गाते हैं। कल कल करके बहती नदियाँ, जब धरती पर आती है। सूनी पड़ी धरा को तब ये, शृंगारित कर जाती है।"

 पर्वत की ऊची चोटी पे,
जब हरियाली छाती है।
नई नवेली दुल्हन मानो,
पिय से मिल शर्माती है।

कारे बदरा बने ओढ़नी,
जब चोटी पर छाते है।
झरझर करके बहते झरने,
मल्हारें तब गाते हैं।

कल कल करके बहती नदियाँ,
जब धरती पर आती है।
सूनी पड़ी धरा को तब ये,
शृंगारित कर जाती है।

पर्वत की ऊची चोटी पे, जब हरियाली छाती है। नई नवेली दुल्हन मानो, पिय से मिल शर्माती है। कारे बदरा बने ओढ़नी, जब चोटी पर छाते है। झरझर करके बहते झरने, मल्हारें तब गाते हैं। कल कल करके बहती नदियाँ, जब धरती पर आती है। सूनी पड़ी धरा को तब ये, शृंगारित कर जाती है।

#प्रकृति

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