मैं जब मरू तो कब्र में ,इस शान से जाऊं
जब लिपटूं कफन से, तो अपनी शायरी की पहचान से जाऊं
और शमशान में उस समय तक, सन्नाटा हो
जब हमसे टूटे ,अपने गांव का नाजुक रिस्ता
उस समय मैं सबके लबों को , खामोश कर जाऊ
Shayar KAKA
©KAKA MAURYA
Shayar KAKA MAURYA Kukha rampur amethi