महफिलें ज़माने में अजीब सा लगता है अकेला हूं फिर भ

"महफिलें ज़माने में अजीब सा लगता है अकेला हूं फिर भी कोई अपना सा लगता है रब ने बनाया तो होगा मेरा भी सनम बस इसी सोच में यूंही मेरा हर दिन ढलता है"

 महफिलें ज़माने में अजीब सा लगता है
अकेला हूं फिर भी कोई अपना सा लगता है
रब ने बनाया तो होगा मेरा भी सनम
बस इसी सोच में यूंही मेरा हर दिन ढलता है

महफिलें ज़माने में अजीब सा लगता है अकेला हूं फिर भी कोई अपना सा लगता है रब ने बनाया तो होगा मेरा भी सनम बस इसी सोच में यूंही मेरा हर दिन ढलता है

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