कहो ! प्रिये मैं कैसे तुम बिन , जीवन अपना बसर करूं | हिंदी Poetry Vide

"कहो ! प्रिये मैं कैसे तुम बिन , जीवन अपना बसर करूंगी... कहती यही सदा है नारी पर मैं तुम बिन भी रह लूंगी... प्रश्न एक है मेरा तुमसे सच बतलाना प्रियतम मेरे... विरह हो जब दो देहों का तो अलग होते हैं प्राण भी क्या यों ! होता यदि विछोह प्राण का सिया का मन न होता राम का... सो हम तुमसे विलग नहीं है पर सात दिवस ये सात बरस है... सब तो छुट रहा रितकर हो कल्पना में अंतरतम तक... बीत रही हर घड़ी हीं मैं हूं होकर भी मैं कहीं नहीं हूं... मनःदशा है ऐसी अब की शिशिर सी लागे मधुमास भी... निरस सा कुछ भाए अब ना मन तेरा ही सुमिरन करता... कहो कनु! अब कैसे तुम बिन, प्रिया तुम्हारी रह हीं सकेगी... कहती यही सदा है नारी पर मैं तुम बिन भी रह लूंगी... ©zindagi with Neha "

कहो ! प्रिये मैं कैसे तुम बिन , जीवन अपना बसर करूंगी... कहती यही सदा है नारी पर मैं तुम बिन भी रह लूंगी... प्रश्न एक है मेरा तुमसे सच बतलाना प्रियतम मेरे... विरह हो जब दो देहों का तो अलग होते हैं प्राण भी क्या यों ! होता यदि विछोह प्राण का सिया का मन न होता राम का... सो हम तुमसे विलग नहीं है पर सात दिवस ये सात बरस है... सब तो छुट रहा रितकर हो कल्पना में अंतरतम तक... बीत रही हर घड़ी हीं मैं हूं होकर भी मैं कहीं नहीं हूं... मनःदशा है ऐसी अब की शिशिर सी लागे मधुमास भी... निरस सा कुछ भाए अब ना मन तेरा ही सुमिरन करता... कहो कनु! अब कैसे तुम बिन, प्रिया तुम्हारी रह हीं सकेगी... कहती यही सदा है नारी पर मैं तुम बिन भी रह लूंगी... ©zindagi with Neha

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