हमको कॉल लगाने की या उनके कॉल उठाने की,
आदत छूट रही है जग से मिलने और मिलाने की,
फूल सुनो मुरझाएगा फिर वापस ना खिल पाएगा,
नीर पिलाओ नेह समझ, धूप लगाओ मुस्काने की।
चारण गोविन्द
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