बड़े बूढ़ों का अपमान। साहब की झूठी शान। ना बचा कि

"बड़े बूढ़ों का अपमान। साहब की झूठी शान। ना बचा किसी में ईमान। क्या यही है अपने गांव की पहचान ? युवा बढ़ाएं ठेके की शान। गांजे में लिपटे हैं प्राण। चॉकलेट वाले पॉकेट में, अब मिला है, गांजे को स्थान। क्या यही हैअपने गांव की पहचान ? जिन रिश्तो का था भाई बहन नाम, किया गया है उनका घोर अपमान। ना रही राखी,ना रहा उसका मान। क्या यही है अपने गांव की पहचान ? ©Rose Ratan"

 बड़े बूढ़ों का अपमान।
साहब की झूठी शान।
 ना बचा किसी में ईमान।
 क्या यही है अपने गांव की पहचान ?

 युवा बढ़ाएं ठेके की शान।
 गांजे में लिपटे हैं प्राण।
 चॉकलेट वाले पॉकेट में,
 अब मिला है, गांजे को स्थान।
क्या यही हैअपने गांव की पहचान ?

जिन रिश्तो का था भाई बहन नाम,
किया गया है उनका घोर अपमान।
ना रही राखी,ना रहा उसका मान।
क्या यही है अपने गांव की पहचान ?

©Rose Ratan

बड़े बूढ़ों का अपमान। साहब की झूठी शान। ना बचा किसी में ईमान। क्या यही है अपने गांव की पहचान ? युवा बढ़ाएं ठेके की शान। गांजे में लिपटे हैं प्राण। चॉकलेट वाले पॉकेट में, अब मिला है, गांजे को स्थान। क्या यही हैअपने गांव की पहचान ? जिन रिश्तो का था भाई बहन नाम, किया गया है उनका घोर अपमान। ना रही राखी,ना रहा उसका मान। क्या यही है अपने गांव की पहचान ? ©Rose Ratan

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