उसने जब पूछना चाहा,
तो उसूलों की किताब थमा दी गयी।
सच बोलते ही उसके,
बस खिताब़ दमा दी गयी।
बयाँ जब दर्द उसने की,
तारीफों के पुल बना डाले।
सूरते-हाल कहने पर,
उससे कहा कि यूँ बकवास-
न तू कर!
हक की बात करने को
यहाँ पे नाम कितने हैं।
©Bharat Bhushan pathak
#यथार्थ
उसने जब पूछना चाहा,
तो उसूलों की किताब थमा दी गयी।
सच बोलते ही उसके,
बस खिताब़ दमा दी गयी।
बयाँ जब दर्द उसने की,
तारीफों के पुल बना डाले।