हसरतों से मिलती ग़र महबूब की बाँहें खुदा क़सम हम यूँ | हिंदी Shayari Vid

"हसरतों से मिलती ग़र महबूब की बाँहें खुदा क़सम हम यूँ तन्हा नहीं होते गैर की क़ुरबत पर न होता एतबार तुमको तो आज मेरे हाथ यूँ खाली नहीं होते।। करूँगा इंतेज़ार तेरा शाम-ए-कज़ा तक सच्चे आशिक़ यूँ बेबफा नहीं होते।। ©Tushar Gupta "

हसरतों से मिलती ग़र महबूब की बाँहें खुदा क़सम हम यूँ तन्हा नहीं होते गैर की क़ुरबत पर न होता एतबार तुमको तो आज मेरे हाथ यूँ खाली नहीं होते।। करूँगा इंतेज़ार तेरा शाम-ए-कज़ा तक सच्चे आशिक़ यूँ बेबफा नहीं होते।। ©Tushar Gupta

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