.......स्त्री....
" क्यों साधी तुमने यूं चुप्पी ,
वक्त वक्त पर क्यों नही बोली ,
माना कि दर्द बहुत था सीने में तेरे ...
मगर ये जुबान वक्त पर क्यों नही खोली ,..
क्यों साधी तुमने ये चुप्पी ....
बहुत अच्छा है तुम्हारी तरह यू मौन रहना ,
मगर जब बात अन्याय की हो ,
पड़ता है तब सबकुछ कहना,....
बस चुप चुप , छूप छूप ये अन्याय न सहना,
संग तुम्हारे चलती है एक शक्ति की पंक्ति
तुम उस शक्ति के साथ अपनी हर बात कहना..
क्यों साधी तुमने ये चुप्पी ,
बीते वक्त में देखो वो खड़ी थी रण के मैदान में ,
तुम भी आ जाना उसी तरह देश की आन में,.....
वो झांसी की रानी ही सही ,
तुम बन जाना अपने दिल की रानी ,
चलो अब तोड़ चलो ये चुप्पी,.....
जो साधी है तुमने न जाने कब से ये .......चुप्पी .....!!
©Parul (kiran)Yadav
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