#OpenPoetry खुद की तलाश में अपनों से इतना दूर आ गई हूँ,
वापसी का रास्ता न चाहते हुए भी भूला चुकी हूँ।
खुद को पहचानने की लड़ाई है,
क्योंकि न जाने यहाँ कौन किसकी परछाई है।
अपनी पसंद नापसंद को चुनने में इस कदर खोई हूँ,
न जाने क्यों,मैं दूसरों की बातों को सुनकर इतना रोइ हूँ।
झूठ के मुखोटे पहने कई मुसाफ़िर मिले है,
जो न जाने कितने अपनो का दिल दुखाके आगे बड़े है।
माना दिल तो कई अपनो का मेने भी दुखाया है,
मगर,झूठ का मुखोटा मैंने अपनी सचाई के तले दबाया है।।
#OpenPoetry
#खुदकीतलाश