#OpenPoetry खुद की तलाश में अपनों से इतना दूर आ

"#OpenPoetry खुद की तलाश में अपनों से इतना दूर आ गई हूँ, वापसी का रास्ता न चाहते हुए भी भूला चुकी हूँ। खुद को पहचानने की लड़ाई है, क्योंकि न जाने यहाँ कौन किसकी परछाई है। अपनी पसंद नापसंद को चुनने में इस कदर खोई हूँ, न जाने क्यों,मैं दूसरों की बातों को सुनकर इतना रोइ हूँ। झूठ के मुखोटे पहने कई मुसाफ़िर मिले है, जो न जाने कितने अपनो का दिल दुखाके आगे बड़े है। माना दिल तो कई अपनो का मेने भी दुखाया है, मगर,झूठ का मुखोटा मैंने अपनी सचाई के तले दबाया है।।"

 #OpenPoetry   खुद की तलाश में अपनों से इतना दूर आ गई  हूँ,
वापसी का रास्ता न चाहते हुए भी भूला चुकी हूँ।

खुद को पहचानने की लड़ाई है,
क्योंकि न जाने यहाँ कौन किसकी परछाई है।

अपनी पसंद नापसंद को चुनने में इस कदर खोई हूँ,
न जाने क्यों,मैं दूसरों की बातों को सुनकर इतना रोइ हूँ।

झूठ के मुखोटे पहने कई मुसाफ़िर मिले है,
जो न जाने कितने अपनो का दिल दुखाके आगे बड़े है।

माना दिल तो कई अपनो का मेने भी दुखाया है,
मगर,झूठ का मुखोटा मैंने अपनी सचाई के तले  दबाया है।।

#OpenPoetry खुद की तलाश में अपनों से इतना दूर आ गई हूँ, वापसी का रास्ता न चाहते हुए भी भूला चुकी हूँ। खुद को पहचानने की लड़ाई है, क्योंकि न जाने यहाँ कौन किसकी परछाई है। अपनी पसंद नापसंद को चुनने में इस कदर खोई हूँ, न जाने क्यों,मैं दूसरों की बातों को सुनकर इतना रोइ हूँ। झूठ के मुखोटे पहने कई मुसाफ़िर मिले है, जो न जाने कितने अपनो का दिल दुखाके आगे बड़े है। माना दिल तो कई अपनो का मेने भी दुखाया है, मगर,झूठ का मुखोटा मैंने अपनी सचाई के तले दबाया है।।

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#खुदकीतलाश

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