गज़ल
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मोसमी दाब है बयानों से
बात बनती नहीं सितारों से |
जुर्म है ये तरस किनारों से ।
हो गई दुश्मनी नजारों से।
हाल दिल का ज़ुबाँ नही कहना,
बात फैले कही दीवारों से |
दूर तक कुछ नजर नहीं आता,
राह धुँधली हुई ग़ुबारों से |
रोज सुनते हैं हम इशारों से ।
चांद की गुफतगू सितारों से ।
ड़र सा लगता है अब तो फूलों से।
साथ अपना रहा है खारों से|
फ़ासले बढ़ गए बहुत अब तो,
उससे मिलना हुआ न सालों से.
रेखा मोहन
©R. Mohani
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