जितने भी थे अरमानों के घड़ों, सारे के सारे फूट के | हिंदी शायरी

"जितने भी थे अरमानों के घड़ों, सारे के सारे फूट के रह गए। जो कुछ बचे थे सितारे ख्वाबों के, सारे टूट के रह गए। कई दिनों से थे बंद मुट्ठी में रिश्ते, छूटे की फिर सब छुट के रह गए। वे हाथ जो दुआओं के लिए उठे थे हमारी तरफ, उठे थे उठ के रह गए। और साहब किया था भरोसा चौकीदारों पर। और फिर हम उन्हीं से लूट के रह गए। ‌रचयिता-प्रवीण उजोनेt ©Praveen Ujone"

 जितने भी थे अरमानों के घड़ों,
सारे के सारे फूट के रह गए।

जो कुछ बचे थे सितारे ख्वाबों के,
सारे टूट के रह गए।

कई दिनों से थे बंद मुट्ठी में रिश्ते,
छूटे की फिर सब छुट के रह गए।

वे हाथ जो दुआओं के लिए उठे थे हमारी तरफ,
उठे थे उठ के रह गए।

और साहब किया था भरोसा चौकीदारों पर।
और फिर हम उन्हीं से लूट के रह गए।

‌रचयिता-प्रवीण उजोनेt

©Praveen Ujone

जितने भी थे अरमानों के घड़ों, सारे के सारे फूट के रह गए। जो कुछ बचे थे सितारे ख्वाबों के, सारे टूट के रह गए। कई दिनों से थे बंद मुट्ठी में रिश्ते, छूटे की फिर सब छुट के रह गए। वे हाथ जो दुआओं के लिए उठे थे हमारी तरफ, उठे थे उठ के रह गए। और साहब किया था भरोसा चौकीदारों पर। और फिर हम उन्हीं से लूट के रह गए। ‌रचयिता-प्रवीण उजोनेt ©Praveen Ujone

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