जितनी दुरी थी उतनी ही दुरी रहै जिसको मुजसे प्यार च | हिंदी शायरी

"जितनी दुरी थी उतनी ही दुरी रहै जिसको मुजसे प्यार चाहिए मे थक चुका हु दुनिया के रिती रिवाजो से अब मुजे नया शिकार चाहिए हबस का खेल अब जिस्म की सारी हादो से पार हो गया वो ओरत मर्द बदल बदल के कह रही है मुजे अब प्यार चाहिए ©ROCKMB Rishab jain"

 जितनी दुरी थी उतनी ही दुरी रहै जिसको मुजसे प्यार चाहिए
मे थक चुका हु दुनिया के रिती रिवाजो से  अब मुजे नया शिकार चाहिए
हबस का खेल अब जिस्म की सारी हादो से पार हो गया
वो ओरत मर्द बदल बदल के कह रही है मुजे अब प्यार चाहिए

©ROCKMB Rishab jain

जितनी दुरी थी उतनी ही दुरी रहै जिसको मुजसे प्यार चाहिए मे थक चुका हु दुनिया के रिती रिवाजो से अब मुजे नया शिकार चाहिए हबस का खेल अब जिस्म की सारी हादो से पार हो गया वो ओरत मर्द बदल बदल के कह रही है मुजे अब प्यार चाहिए ©ROCKMB Rishab jain

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