उम्र थी मेरी 5 साल वो रास्ता मुझे याद था, हसी थी | हिंदी कविता

"उम्र थी मेरी 5 साल वो रास्ता मुझे याद था, हसी थी माँ के चेहरे पर, बस्ता मेरे साथ था खिलौने से घिरी थी मेरी जिंदगी दुनिया की डोर से दूर थी गेट खुला था एक ओर से नए पड़ाव की वो भौर थी पल बीतते गए ना समझ अब समझदार होगया एक सपना देखा उड़ने का उड़ा तो सही मगर कटा और आ गिरा कहीं खोगया... । '' हिम्मत थी उठने की मैं उठा लेता उस सपनें को जेब ने जवाब दे दिया बाप के काश रोक लेता,मैं उस पल को ''। सपनों की भार पर पैसों की मार हमेशा पड़ जाती है भारी... ये धर्म नहीं देखती ना देखती किसी की जात यह दिन मे भी कुरेदे उतार दे मौत के घाट..।। " परिवार की कठिनाईयों में लोग बेच देते हैं खुदको भूल जाते हैं हर सपने तोड़ देते है खुदको न सवरने का मौका मिलता है न संभलने को..। '' वक्त निकलता चले जाता है और हम मजबूर से मजदूर बन जाते हैं...''!"

 उम्र थी मेरी 5 साल 
वो रास्ता मुझे याद था, 
हसी थी माँ के चेहरे पर, बस्ता मेरे साथ था 
खिलौने से घिरी थी मेरी जिंदगी 
दुनिया की डोर से दूर थी 
गेट खुला था एक ओर से 
नए पड़ाव की वो भौर थी 
पल बीतते गए ना समझ अब समझदार होगया 
एक सपना देखा  उड़ने का 
उड़ा तो सही मगर कटा और आ गिरा
 कहीं खोगया... ।
'' हिम्मत थी उठने की   
मैं उठा लेता उस सपनें को 
जेब ने जवाब दे दिया बाप के 
काश रोक लेता,मैं उस पल को ''। 
सपनों की भार पर पैसों की मार हमेशा 
पड़ जाती है भारी... 
ये धर्म नहीं देखती
 ना देखती किसी की जात
 यह दिन मे भी कुरेदे
 उतार दे मौत के घाट..।। 
" परिवार की कठिनाईयों में लोग बेच देते हैं खुदको 
भूल जाते हैं हर सपने तोड़ देते है खुदको
 न सवरने का मौका मिलता है
न संभलने को..। 

'' वक्त निकलता चले जाता है और हम मजबूर से
 मजदूर बन जाते हैं...''!

उम्र थी मेरी 5 साल वो रास्ता मुझे याद था, हसी थी माँ के चेहरे पर, बस्ता मेरे साथ था खिलौने से घिरी थी मेरी जिंदगी दुनिया की डोर से दूर थी गेट खुला था एक ओर से नए पड़ाव की वो भौर थी पल बीतते गए ना समझ अब समझदार होगया एक सपना देखा उड़ने का उड़ा तो सही मगर कटा और आ गिरा कहीं खोगया... । '' हिम्मत थी उठने की मैं उठा लेता उस सपनें को जेब ने जवाब दे दिया बाप के काश रोक लेता,मैं उस पल को ''। सपनों की भार पर पैसों की मार हमेशा पड़ जाती है भारी... ये धर्म नहीं देखती ना देखती किसी की जात यह दिन मे भी कुरेदे उतार दे मौत के घाट..।। " परिवार की कठिनाईयों में लोग बेच देते हैं खुदको भूल जाते हैं हर सपने तोड़ देते है खुदको न सवरने का मौका मिलता है न संभलने को..। '' वक्त निकलता चले जाता है और हम मजबूर से मजदूर बन जाते हैं...''!

#findingyourself #midleclass #Dreams #moneyslave #udaan #School #Childhood #untoldstory #Deep #Broken @shivani suryawanshi आशीष रॉय 🇮🇳 𝐒𝐢𝐥𝐞𝐧𝐭 𝐰𝐨𝐫𝐝𝐬 Suman Zaniyan Sanawrites_______

People who shared love close

More like this

Trending Topic