"दर्द जब आंखो से निकलता है"
दर्द जब आंखो से निकलता है, तब उसकी याद आती है।
उसके वजूद की हर, बात मुझे याद दिलाती है।
तेरी यादों के ख्याली समन्दर में, मै गोते हर रोज़ लगाता हूँ।
तो मुझे वो हर , शाम बस तेरी याद दिलाती है।
कभी जो साथ हुआ करते थे, वो आज पराए हो गए।
भरी महफिल में वो, हमको रुसवा कर गए।
उसकी बातो का जिक्र, जब जब होता है।
ना चाहते हुए भी, उसी की याद आती है।
जग ने जिसे जाना था, जग ने जिसे माना था।
मेरा तो एक बस, तू ही ठिकाना था।
अल्फ़ाज़ो के घेरो से निकला ही था, तभी समझदारी के दलदल में पाया है।
दर्द जब आंखो से निकलता है, तब उसकी याद आती है।
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