फिर एक बार तिरंगा फहराओं जाओ घाटी को सुलगाओं। मुक् | हिंदी Video

"फिर एक बार तिरंगा फहराओं जाओ घाटी को सुलगाओं। मुक्त करो नियमों के अंधक को, नोचों आंखें ,जाओ शेरों, मद होकर क्रीड़ा 'संघार' करो।। खंड करो तिनका तिनका , हो सत -सहस्त्र कोटि खंण्डन तन का। हो भीषण चीख व्यथा गुंजित, लहू से तर होकर शव पूछे हूं आखिर मैं तन किसका।। जाओ झगझोरों आत्म नियंत्रण को, तोड़ो भुज पर पड़े निलंबन को। रंजित हो एक रक्त संहिता, बन जाओ भैरव ,और रक्तिममुण्डों से श्रृंगार करो।। चींखें हो चहुं दिश ,थर्राते हो कटे हाथ, सिर धड़ से कटा बिलखता हो। चीखों को सुन गिध्दो के मन में करुणा हों, रोते हों आंसू ,और कहीं आंखों को गिध्द निगलता हों।। मानवता शर्मिंदा हों ,न एक कोई भी जिंदा हो, क्षतिविच्क्षित हो छाती ,मुंण्ड में रक्त कोई पीता हो । टूटे सब प्रहार पाषाण, प्राणों से तन डरता हों।।"

फिर एक बार तिरंगा फहराओं जाओ घाटी को सुलगाओं। मुक्त करो नियमों के अंधक को, नोचों आंखें ,जाओ शेरों, मद होकर क्रीड़ा 'संघार' करो।। खंड करो तिनका तिनका , हो सत -सहस्त्र कोटि खंण्डन तन का। हो भीषण चीख व्यथा गुंजित, लहू से तर होकर शव पूछे हूं आखिर मैं तन किसका।। जाओ झगझोरों आत्म नियंत्रण को, तोड़ो भुज पर पड़े निलंबन को। रंजित हो एक रक्त संहिता, बन जाओ भैरव ,और रक्तिममुण्डों से श्रृंगार करो।। चींखें हो चहुं दिश ,थर्राते हो कटे हाथ, सिर धड़ से कटा बिलखता हो। चीखों को सुन गिध्दो के मन में करुणा हों, रोते हों आंसू ,और कहीं आंखों को गिध्द निगलता हों।। मानवता शर्मिंदा हों ,न एक कोई भी जिंदा हो, क्षतिविच्क्षित हो छाती ,मुंण्ड में रक्त कोई पीता हो । टूटे सब प्रहार पाषाण, प्राणों से तन डरता हों।।

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