और कई दिन ये उदासी मैं ढो नहीं सकती किसी की भी बाह | हिंदी Shayari

"और कई दिन ये उदासी मैं ढो नहीं सकती किसी की भी बाहों में तो रो नहीं सकती फ़ैसला था जो मेरा वो तो मेरा था ना अपनी ही जैसी मैं क्यों हो नहीं सकती बुझी है शमा और अंधेरा भी घना हैं चराग़ों में भी लौ कोई पिरो नहीं सकती कल चहचहाती हुई फिरती थीं जो लड़की आज खुलकर वो हंस क्यों नहीं सकती आया एक झोंका ओर छीन गया सब कुछ खुशी क़ल्ब शरारत चैन से सो नहीं सकती ©Ana"

 और कई दिन ये उदासी मैं ढो नहीं सकती
किसी की भी बाहों में तो रो नहीं सकती

फ़ैसला था जो मेरा वो तो मेरा था ना
अपनी ही जैसी मैं क्यों हो नहीं सकती
 
बुझी है शमा और अंधेरा भी घना हैं
चराग़ों में भी लौ कोई पिरो नहीं सकती

कल चहचहाती हुई फिरती थीं जो लड़की
आज खुलकर वो हंस क्यों नहीं सकती

आया एक झोंका ओर छीन गया सब कुछ
खुशी क़ल्ब शरारत चैन से सो नहीं सकती

©Ana

और कई दिन ये उदासी मैं ढो नहीं सकती किसी की भी बाहों में तो रो नहीं सकती फ़ैसला था जो मेरा वो तो मेरा था ना अपनी ही जैसी मैं क्यों हो नहीं सकती बुझी है शमा और अंधेरा भी घना हैं चराग़ों में भी लौ कोई पिरो नहीं सकती कल चहचहाती हुई फिरती थीं जो लड़की आज खुलकर वो हंस क्यों नहीं सकती आया एक झोंका ओर छीन गया सब कुछ खुशी क़ल्ब शरारत चैन से सो नहीं सकती ©Ana

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