हर ख्याल नकारात्मक हैं दिमाग में
हर बात पर गुस्सा हैं
हर किसी से नाराजगी हैं
ना समझ में आने वाली उदासी हैं
खैर यहां तक पहुंच गया हूं स्वयं को बधाई हैं
क्योंकि ये वो अंतिम पडाव हैं
जहां हम खुद को खोते चले आए हैं
यहां से कुछ तो अलग होगा,
स्वयं से मिलन होगा,
कुछ तो नया परिर्वतन होगा,
क्योंकि परिवर्तन ही तो प्रकृति का नियम हैं
और जो इंसान मरने का सोचते सोचते
एकदम से जीने का फैसला लेता हैं
उसके लिए जीवन की परिभाषा भी अन्नत हैं
©M9jpooniya
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