कविता
यहां उपजाऊ भूमि है
तो अंकुर नि: संदेह फूटेंगे
फसल के भी और कविता के भी
शहर में भूमि के उपर
कंक्रीट की परत है
वहां भाई न्यायालय में बैठा
इधर हर कोई भरत है
लहलहाते खेत
जन्म देते हैं संवेदनशीलता को
शब्द उगते हैं होंठों को बताकर
उधर हवा रह जाती है
सिसकती बेबस
दिवारों से टकराकर
प्रकृति यहां सब कुछ देती है
और हां! एक सौम्य कविता इधर ही जन्म लेती है
©parveen mati
कविता
यहां उपजाऊ भूमि है
तो अंकुर नि: संदेह फूटेंगे
फसल के भी और कविता के भी
शहर में भूमि के उपर
कंक्रीट की परत है
वहां भाई न्यायालय में बैठा