जब भी कुछ लिखा हूं राधे तेरा ही नाम आता है,
मेरे हर इश्क में वृंदावन धाम याद आता है।
प्रेम इश्क प्यार मोहब्बत का तो पता नहीं,
पर मेरे जीवन के हर कण कण में माखन घोल
दिया है।।
मन बहुत होता है की उन गलियों में घूम आऊ,
श्यामा प्यारी से एक बार लाड लगा आऊ।
असल प्रेम के परिभाषा को,
बशुरी के धुन को पीरो कर सुरमयी हो जाऊ।।
मैं रसखान नहीं प्यारी की गलियों का,
मैं तो एक बिछड़ा हुआ आशिक़ हूं दूर का।।
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