जीभ बनाई खुदा ने गुलाब जैसे
चलती जाती है कैसे कटार जैसे।
है नरम भीगी बरसात जैसे।
जब बोले तो छींटे उड़े है तेजाब जैसे।
खुदा ने जीभ बनाई गुलाब जैसे।
रहती पहरे में जेवरात जैसे।
लूट लेती किसी को बाजार जैसे।
ठंडी है इसकी तासूर कैसे।
जब आग लगा दे जो छोड़े शब्द के बाण ऐसे
खुदा ने जीभ बनाई गुलाब जैसे।
फिर क्यों चले हैं कतार जैसे।
©Neeraj Neel
शब्द।
#Rose