Love छुप-छुप कर रोता रहता था ,बाते थोडी कम करता था ।
हो जाती जब साँसे भारी,तो मुस्काया हम करता था ।
लेकिन नाम लवों पे उसका , कभी न देखो मैं लेता था-
लेकिन ढ़लती रातों में मैं , आँखें अपनी नम करता था ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
छुप-छुप कर रोता रहता था ,बाते थोडी कम करता था ।
हो जाती जब साँसे भारी,तो मुस्काया हम करता था ।
लेकिन नाम लवों पे उसका , कभी न देखो मैं लेता था-
लेकिन ढ़लती रातों में मैं , आँखें अपनी नम करता था ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर