White वाराणसी के घाटों की खुशी शायद नहीं थी मुझ म | हिंदी Election 202

"White वाराणसी के घाटों की खुशी शायद नहीं थी मुझ में बसी तभी तो लौटा दिया बिन गलती के दफा किया कागजों की गलती को नामंजूरी का बहाना दिया। 'मैं' और सिर्फ 'मैं' ने किसी के जज्बातों को मिटा दिया इस काशी की धरा को काशी-वालों से जुदा किया है । है जो कुछ लोग जो बदलाव चाहते हैं रातों-रात उनको देशद्रोही का नाम दिया । 'श्याम' की उम्मीद को कॉमेडी समझ टाल दिया लोकतांत्रिक अधिकारों को पन्नों की तरह फाड़ दिया। अभी भी वक्त है समझ जाओ हिंदुस्तान के बाशिंदों संभल जाओ राजनीति से 'नीति' कहीं ओझल ना हो जाए एक चिराग नैतिकता वाला हर कोने में जला आओ। ©Jaidev Joshi "

White वाराणसी के घाटों की खुशी शायद नहीं थी मुझ में बसी तभी तो लौटा दिया बिन गलती के दफा किया कागजों की गलती को नामंजूरी का बहाना दिया। 'मैं' और सिर्फ 'मैं' ने किसी के जज्बातों को मिटा दिया इस काशी की धरा को काशी-वालों से जुदा किया है । है जो कुछ लोग जो बदलाव चाहते हैं रातों-रात उनको देशद्रोही का नाम दिया । 'श्याम' की उम्मीद को कॉमेडी समझ टाल दिया लोकतांत्रिक अधिकारों को पन्नों की तरह फाड़ दिया। अभी भी वक्त है समझ जाओ हिंदुस्तान के बाशिंदों संभल जाओ राजनीति से 'नीति' कहीं ओझल ना हो जाए एक चिराग नैतिकता वाला हर कोने में जला आओ। ©Jaidev Joshi

Shyam Rangeela and today's politics

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