सिर्फ कह देने से
कोई बात नहीं होता
रिश्ते का नाम देने से
कोई रिश्तेदार नहीं होता
अपने ही मुख से....
प्रशंसा का कोई लाभ नहीं होता
खुश रहना अलग बात है
और खुश रखना अदब सा 'राज' है
जिस 'राज' का खजाना तो केवल
"संबोधी महफिल" के उस गुलदस्ते के पास है
जिस गुलदस्ते को ........
"संबोधि महफिल" के रंग -बिरंगे फूल बुलाते
कहकर **राज- राजेश -राज** है
©Parinita Raj "Khushboo "
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