#नज़्म आसमानों की चाह रखने वालों को जमीं के

"#नज़्म आसमानों की चाह रखने वालों को जमीं के लिए तरसते देखा है, खुद शोलों में रहकर औरों के लिए हमने, सावन को बरसते देखा है। क्य़ा कहना इस रंज-ए-सफ़र का ! सहारों को वीरां सफ़र में बिछुड़ते देखा है, दिनभर जो महफिल में मशगूल रहते हैं, ढ़ली शाम तन्हाईय़ों में उनको तड़पते देखा है। ग़म न कर ज़िन्दगी ! सफ़र अभी बाक़ी है, कई लम्हें गुजरने हैं, कईयों को गुजरते देखा है । __सावन ©T.C.Sawan"

 #नज़्म

आसमानों  की  चाह रखने  वालों  को
जमीं  के  लिए तरसते  देखा   है,
खुद  शोलों  में रहकर  औरों  के  लिए हमने,
सावन  को बरसते  देखा  है।
क्य़ा  कहना इस  रंज-ए-सफ़र  का !
सहारों को वीरां सफ़र में बिछुड़ते देखा है,
दिनभर जो महफिल में मशगूल रहते हैं,
ढ़ली शाम तन्हाईय़ों में उनको तड़पते देखा है।
ग़म न कर ज़िन्दगी ! सफ़र अभी बाक़ी है,
कई लम्हें  गुजरने हैं, कईयों को गुजरते देखा है ।

__सावन

©T.C.Sawan

#नज़्म आसमानों की चाह रखने वालों को जमीं के लिए तरसते देखा है, खुद शोलों में रहकर औरों के लिए हमने, सावन को बरसते देखा है। क्य़ा कहना इस रंज-ए-सफ़र का ! सहारों को वीरां सफ़र में बिछुड़ते देखा है, दिनभर जो महफिल में मशगूल रहते हैं, ढ़ली शाम तन्हाईय़ों में उनको तड़पते देखा है। ग़म न कर ज़िन्दगी ! सफ़र अभी बाक़ी है, कई लम्हें गुजरने हैं, कईयों को गुजरते देखा है । __सावन ©T.C.Sawan

#gazal

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