कि, आँखों की बात लिख दूँगा,
देर, सवेर कई शाम लिख दूँगा
अपनी चंचल मन की बात कहना तुम
कठिन प्रेम की कई रात लिख दूँगा,
माना की प्रेम में अभिनय अच्छा कर लेती हो तुम
इतना बड़ा साहस कैसे कर लेती हो तुम,
और मेरे प्रेम की मर्यादा की सीमा लांघी हैं तुमने
कि, मेरे मौन की मर्यादा की सीमा लांघी हैं तुमने,
सांकल, चौखट, आँगन, मिट्टी की खुशबू लिख दूँगा
कवि हूँ, गाँव की मायूस कलियों का श्रृंगार लिख दूँगा,
और मैं नहीं अब तुम्हारे वश का, हृदय कोमल को मारा हैं तुमने
एक और युद्ध होगा समय के चक्र का, ये छल कपट जाना हैं हमने!
__प्रेम__निराला__
©Prem Nirala
कि, आँखों की बात लिख दूँगा,
देर, सवेर कई शाम लिख दूँगा
अपनी चंचल मन की बात कहना तुम
कठिन प्रेम की कई रात लिख दूँगा,
माना की प्रेम में अभिनय अच्छा कर लेती हो तुम
इतना बड़ा साहस कैसे कर लेती हो तुम,