मैं रुह से रुह की डगर खोजता हूं। मुश्किल है मिलना | हिंदी कविता Video

"मैं रुह से रुह की डगर खोजता हूं। मुश्किल है मिलना , मगर खोजता हूं।। तल्ख़ मिजाज है लोग मेरे शहर के नज़र मिलाकर नज़र तबाह कर देते है पनाह दे पलकों पर मुझे कोई श्रीकृष्ण की तरह मैं सुदामा, श्रीकृष्ण वाला वो शहर खोजता हूं।। आजकल चरचे है बड़े दिल्लगी सी मोहब्बत के लोग बिना दिल दिखाए मोहब्बत खोजते है इश्क़ मुकम्मल ना हो, किसे परवाह है बस दोस्ती निभा सके कयामत तक मैं एक ऐसा लख्ते ज़िगर खोजता हूं।। सुना है इश्क़ में फ़ना तक हो जाते है लोग दोस्त मिल जाए मुकम्मल चार मुझे बस मैं दोस्ती में इश्क़ सा असर खोजता हूं।।"

मैं रुह से रुह की डगर खोजता हूं। मुश्किल है मिलना , मगर खोजता हूं।। तल्ख़ मिजाज है लोग मेरे शहर के नज़र मिलाकर नज़र तबाह कर देते है पनाह दे पलकों पर मुझे कोई श्रीकृष्ण की तरह मैं सुदामा, श्रीकृष्ण वाला वो शहर खोजता हूं।। आजकल चरचे है बड़े दिल्लगी सी मोहब्बत के लोग बिना दिल दिखाए मोहब्बत खोजते है इश्क़ मुकम्मल ना हो, किसे परवाह है बस दोस्ती निभा सके कयामत तक मैं एक ऐसा लख्ते ज़िगर खोजता हूं।। सुना है इश्क़ में फ़ना तक हो जाते है लोग दोस्त मिल जाए मुकम्मल चार मुझे बस मैं दोस्ती में इश्क़ सा असर खोजता हूं।।

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