White संध्या छन्द :-
221 212 22
इंसान क्या नही खाता ।
क्या देखता नही दाता ।।
है अंत में जरा देरी ।
आयी न रात अंधेरी ।।
पीडा समीप में डोले ।
तो राम राम वे बोले ।।
कान्हा कहें सुनो राधा ।
वो भक्त ही बना बाधा ।।
मीठी लगे हमें बोली ।
जो प्रेम से भरें झोली ।।
जो आप पास में होते
तो क्यूँ भला बता रोते ।।
मैं तो करूँ सदा सेवा ।
औ चाहता मिले मेवा ।।
जो दान में मिला देखा ।
ये भाग्य से बनी रेखा ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
संध्या छन्द :-
221 212 22
इंसान क्या नही खाता ।
क्या देखता नही दाता ।।
है अंत में जरा देरी ।
आयी न रात अंधेरी ।।