काश! मैं भी पंछी होती...... काश मैं भी पंछी होती

"काश! मैं भी पंछी होती...... काश मैं भी पंछी होती तो इस आसमां में कहीं उड़ जाती !! उड़ती में इस नीले अंबर के इस छोर से उस छोर तक, नापने अनंत आकाश को इन काले घने बादलों के अंधकार के बीच, गुमा देती मैं ख़ुद को बारिश में अपने तन को भीगोती, झरोखों में बैठी अपने आप को संजोती.... काश मैं भी पंछी होती.. भाषा का ज्ञान न होता लेकिन अपने प्रेम की परिभाषा में सबको पिरोती.. जीवन कठिन ज़रूर होता पर नियम कानून से सजी होती धूप होती या छांव बस... मैं उड़ती रहती, अपने पंख फैलाए देश परदेस में फिरती रहती. काश! मैं इस दुनिया की पंछी होकर इस आसमां में कहीं उड़ती रहती!!!!! जब रात आने को होती तो अपने पंखों पर सितारों को बिठाकर दुनिया भर की सैर करती चांद के सिर पर बैठकर अपने आप को आवाज देती, वापस बुलाने के लिए! काश!! मैं भी पंछी होती... ©Nisha Sarda"

 काश! मैं भी पंछी होती......

काश मैं भी पंछी होती तो इस आसमां में कहीं उड़ जाती !!

उड़ती में इस नीले अंबर के इस छोर से उस छोर तक, नापने अनंत आकाश को

इन काले घने बादलों के अंधकार के बीच, गुमा देती मैं ख़ुद को

बारिश में अपने तन को भीगोती, झरोखों में बैठी अपने आप को संजोती....

काश मैं भी पंछी होती..
भाषा का ज्ञान न होता लेकिन अपने प्रेम की परिभाषा में सबको पिरोती..

जीवन कठिन ज़रूर होता पर नियम कानून से सजी होती

धूप होती या छांव बस...
मैं उड़ती रहती, अपने पंख फैलाए देश परदेस में फिरती रहती.

काश! मैं इस दुनिया की पंछी होकर इस आसमां में कहीं उड़ती रहती!!!!!

जब रात आने को होती तो 
अपने पंखों पर सितारों को बिठाकर
दुनिया भर की सैर करती

चांद के सिर पर बैठकर
अपने आप को आवाज देती, वापस बुलाने के लिए!

काश!! मैं भी पंछी होती...

©Nisha Sarda

काश! मैं भी पंछी होती...... काश मैं भी पंछी होती तो इस आसमां में कहीं उड़ जाती !! उड़ती में इस नीले अंबर के इस छोर से उस छोर तक, नापने अनंत आकाश को इन काले घने बादलों के अंधकार के बीच, गुमा देती मैं ख़ुद को बारिश में अपने तन को भीगोती, झरोखों में बैठी अपने आप को संजोती.... काश मैं भी पंछी होती.. भाषा का ज्ञान न होता लेकिन अपने प्रेम की परिभाषा में सबको पिरोती.. जीवन कठिन ज़रूर होता पर नियम कानून से सजी होती धूप होती या छांव बस... मैं उड़ती रहती, अपने पंख फैलाए देश परदेस में फिरती रहती. काश! मैं इस दुनिया की पंछी होकर इस आसमां में कहीं उड़ती रहती!!!!! जब रात आने को होती तो अपने पंखों पर सितारों को बिठाकर दुनिया भर की सैर करती चांद के सिर पर बैठकर अपने आप को आवाज देती, वापस बुलाने के लिए! काश!! मैं भी पंछी होती... ©Nisha Sarda

#SunSet

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