फंदे पर झूल कर सब रिश्तों को भूल कर एक जमाना गुजर | हिंदी कविता

"फंदे पर झूल कर सब रिश्तों को भूल कर एक जमाना गुजर गया हर ख्वाब को धूल कर वो जिसने अपने दम पर रचा नया इतिहास था कह रहा, जमाना के वो... अंदर से हताश था जरूर किसी ने खेला होगा जज्बातों से बेइंतेहा जी रहा था अकेला ही... मगर जिंदा लाश था अनसुलझे से पहलुओं में दबी जिंदगी की कहानी रस्सी की मोहताज थी क्या ?? उसकी आखरी जवानी....????? राहुल कुमावत✍️"

 फंदे पर झूल कर 
सब रिश्तों को भूल कर
एक जमाना गुजर गया
हर ख्वाब को धूल कर

वो जिसने अपने दम पर
रचा नया इतिहास था
कह रहा, जमाना के वो...
अंदर से हताश था
जरूर किसी ने खेला होगा
जज्बातों से बेइंतेहा
जी रहा था अकेला ही...  
मगर जिंदा लाश था

अनसुलझे से पहलुओं में
दबी जिंदगी की कहानी
रस्सी की मोहताज थी क्या ??
            उसकी आखरी जवानी....?????
  
                                         राहुल कुमावत✍️

फंदे पर झूल कर सब रिश्तों को भूल कर एक जमाना गुजर गया हर ख्वाब को धूल कर वो जिसने अपने दम पर रचा नया इतिहास था कह रहा, जमाना के वो... अंदर से हताश था जरूर किसी ने खेला होगा जज्बातों से बेइंतेहा जी रहा था अकेला ही... मगर जिंदा लाश था अनसुलझे से पहलुओं में दबी जिंदगी की कहानी रस्सी की मोहताज थी क्या ?? उसकी आखरी जवानी....????? राहुल कुमावत✍️

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