अवसर दो
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मुझको बच्चा रहने दो
जरा सुनहरे अवसर दो
बचपन मेरा छीनो मत
समझो मेरी कैसी हठ
चाह रहा हूं दिनभर खेलूं
अरमां अपने कहने दो
बच्चा मुझको रहने दो
कोमल तन की समझो पीर
अंतस कितना रहे अधीर
नन्हा पौधा पेड़ बनेगा
मुक्त गगन में बढने दो
बच्चा मुझको रहने दो
मैं अबोध जग राहों से
सरिता के प्रवाहों से
सीख जाऊंगा मंत्र जीत का
शनैः शनैः खुद चलने दो
©kavi Purushottam das
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