दो ऋतुएँ जो कि मेहरबान रहती थीं मुझपर ख़फ़ा जो आप हु | हिंदी Shayari

"दो ऋतुएँ जो कि मेहरबान रहती थीं मुझपर ख़फ़ा जो आप हुए वो भी खिन्न हो ही गईं जो अंश माँगा था उसने वो हर दिया हमने हमारी राहें मगर फिर भी भिन्न हो ही गईं ©Ghumnam Gautam"

 दो ऋतुएँ जो कि मेहरबान रहती थीं मुझपर
ख़फ़ा जो आप हुए वो भी खिन्न हो ही गईं

जो अंश माँगा था उसने वो हर दिया हमने
हमारी राहें मगर फिर भी भिन्न हो ही गईं

©Ghumnam Gautam

दो ऋतुएँ जो कि मेहरबान रहती थीं मुझपर ख़फ़ा जो आप हुए वो भी खिन्न हो ही गईं जो अंश माँगा था उसने वो हर दिया हमने हमारी राहें मगर फिर भी भिन्न हो ही गईं ©Ghumnam Gautam

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