इक़ दौंर ग़या, इक दौंर आया।
तब क्या ख़ोया, अब क्या पाया॥
जिन्दगी की लहरो में तैरतें चलें गये।
कभी ख़ुद को मझ़धार मे पाया॥
तो कभीं मझ़धार से पार लग़ाया।
इक दौंर गया, इक़ दौर आया॥
राहे मिलती रहीं, हम चलतें रहे।
कभी मन्जिल को दूर से देख़ा॥
तो कभीं मन्जिल को पास हीं पाया।
इक़ दौर गया, इक़ दौर आया॥
जिन्दगी ने हर पल हमे आज़माया।
जिन्दगी ने हर क्षण हमे थक़ाया॥
और कभीं इक़ नया पाठ पढाया।
इक दौंंर गया, इक दौंर आया।
तब क्या ख़ोया, अब़ क्या पाया॥
©Misty
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