कहानी हमारी एक ग़ज़ल ही थी बस वो काफिये की तरह बदलते

"कहानी हमारी एक ग़ज़ल ही थी बस वो काफिये की तरह बदलते रहे और मैं रदीफ़ की तरह साथ रहा । इस तरह कुछ मिसर बने, फिर मिसरों से शेयर बने और शेयरों के ढेर बने । बस एक मकता ही ना बन पाया जो ग़ज़ल को मुकम्मल कर देता "

 कहानी हमारी एक ग़ज़ल ही थी
बस वो काफिये की तरह बदलते रहे
और मैं रदीफ़ की तरह साथ रहा ।
इस तरह कुछ मिसर बने, 
फिर मिसरों से शेयर बने
और शेयरों के ढेर बने ।
बस एक मकता ही ना बन पाया
जो ग़ज़ल को मुकम्मल कर देता

कहानी हमारी एक ग़ज़ल ही थी बस वो काफिये की तरह बदलते रहे और मैं रदीफ़ की तरह साथ रहा । इस तरह कुछ मिसर बने, फिर मिसरों से शेयर बने और शेयरों के ढेर बने । बस एक मकता ही ना बन पाया जो ग़ज़ल को मुकम्मल कर देता

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