इश्क ही नादान था या नादानी में इश्क हुआ कमबख़्त य | हिंदी शायरी

"इश्क ही नादान था या नादानी में इश्क हुआ कमबख़्त यह इश्क बड़ा बेईमान होता है l हंसकर अभी उनसे बात भी खूब होती हैं मगर हिज्र में अक्सर अश्क बदनाम होता है l मासूमियत देखकर मासूमियत से मिल गए थे मगर हुस्न का नशा भी बहुत बेकार होता है l हवायें भी मुझसे कहतीं हैं अब मिला ना करो दिल है कि मुलाकात के लिए बेकरार होता है l दिललगी में तुम्हारे वफ़ा की कसमें तो हजारों थीं मुलाकात से पता चला हर शख्स़ बेवफ़ा होता है l © अभिषेक तन्हा"

 इश्क ही नादान था या नादानी में इश्क हुआ 
कमबख़्त यह इश्क बड़ा बेईमान होता है l 

हंसकर अभी उनसे बात भी खूब होती हैं
मगर हिज्र में अक्सर अश्क बदनाम होता है l

मासूमियत देखकर मासूमियत से मिल गए थे 
मगर हुस्न का नशा भी बहुत बेकार होता है l

हवायें भी मुझसे कहतीं हैं अब मिला ना करो
दिल है कि मुलाकात के लिए बेकरार होता है l

दिललगी में तुम्हारे वफ़ा की कसमें तो हजारों थीं
मुलाकात से पता चला हर शख्स़ बेवफ़ा होता है l 

      © अभिषेक तन्हा

इश्क ही नादान था या नादानी में इश्क हुआ कमबख़्त यह इश्क बड़ा बेईमान होता है l हंसकर अभी उनसे बात भी खूब होती हैं मगर हिज्र में अक्सर अश्क बदनाम होता है l मासूमियत देखकर मासूमियत से मिल गए थे मगर हुस्न का नशा भी बहुत बेकार होता है l हवायें भी मुझसे कहतीं हैं अब मिला ना करो दिल है कि मुलाकात के लिए बेकरार होता है l दिललगी में तुम्हारे वफ़ा की कसमें तो हजारों थीं मुलाकात से पता चला हर शख्स़ बेवफ़ा होता है l © अभिषेक तन्हा

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