रोकर आंसुओ को पीकर,
खुशियों से मुकर जाने का हुनर ।
किसी अपने से अपनी बात,
चाहते हुए भी न कह पाने का हुनर।
और आता है मुझे अपनो की खातिर,
अपनी भूल जाने का हुनर।
उसकी बिंदी , चूड़ी , पायल के कायल भी
हम है,
मगर, उफ़ उसकी लाल चुनार को ओढ़ कर
मुस्कुराने का हुनर।।
©SHIVENDRA TRIVEDI
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