जीवन चारि दिवस का मेला रे !
बांभन झूठा, वेद भी झूठा, झूठा ब्रह्म अकेला रे !
मंदिर भीतर मूर्ति बैठी, पूजति बाहर चेला रे !
लड्डू भोग चढ़ावति जनता, मूर्ति के ढिंग केला रे !
पत्थर मूर्ति कछु न खाती, खाते बांभन चेला रे !
जनता लूटती बांभन सारे, प्रभु जी देति न धेला रे !
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संत शिरोमणि गुरु रविदास जी
जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम
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