कुछ शौक़ था यार फ़क़ीरी का
कुछ इश्क़ ने दर-दर भटकाया
कुछ यार ने कसर न छोड़ी थी
कुछ ज़हर रक़ीब ने घोल दिया
कुछ हिज्र फ़िराक़ का रंग चढ़ा
कुछ यार ने ग़म अनमोल दिया
कुछ क़िस्मत थी बद-क़िस्मत की
कुछ हिज्र विसाल में घोल दिया
कुछ यूँ भी राहें मुश्किल थीं
कुछ ग़म का गले में तौक़ भी था
कुछ शहर के लोग भी ज़ालिम थे
कुछ मरने का हमें शौक़ भी था
©Jashvant
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