कुंज कुंज नग़्मा-ज़न बसंत आ गई अब सजेगी अंजुमन बस | हिंदी कविता

"कुंज कुंज नग़्मा-ज़न बसंत आ गई अब सजेगी अंजुमन बसंत आ गई उड़ रहे हैं शहर में पतंग रंग रंग जगमगा उठा गगन बसंत आ गई मोहने लुभाने वाले प्यारे प्यारे लोग देखना चमन चमन बसंत आ गई सब्ज़ खेतियों पे फिर निखार आ गया ले के ज़र्द पैरहन बसंत आ गई पिछले साल के मलाल दिल से मिट गए ले के फिर नई चुभन बसंत आ गई !! - ©Harsh kumar shukla"

 कुंज कुंज नग़्मा-ज़न बसंत आ गई 
अब सजेगी अंजुमन बसंत आ गई 

उड़ रहे हैं शहर में पतंग रंग रंग 
जगमगा उठा गगन बसंत आ गई 

मोहने लुभाने वाले प्यारे प्यारे लोग 
देखना चमन चमन बसंत आ गई 

सब्ज़ खेतियों पे फिर निखार आ गया 
ले के ज़र्द पैरहन बसंत आ गई 

पिछले साल के मलाल दिल से मिट गए 
ले के फिर नई चुभन बसंत आ गई !!
-

©Harsh kumar shukla

कुंज कुंज नग़्मा-ज़न बसंत आ गई अब सजेगी अंजुमन बसंत आ गई उड़ रहे हैं शहर में पतंग रंग रंग जगमगा उठा गगन बसंत आ गई मोहने लुभाने वाले प्यारे प्यारे लोग देखना चमन चमन बसंत आ गई सब्ज़ खेतियों पे फिर निखार आ गया ले के ज़र्द पैरहन बसंत आ गई पिछले साल के मलाल दिल से मिट गए ले के फिर नई चुभन बसंत आ गई !! - ©Harsh kumar shukla

#Basant_Panchmi

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