चाँद के बिना ये रात अधूरी लगती है
तेरे साथ बिना हर बात अधूरी लगती है।
कैसे कह दूँ की मैं खुश हूँ बहुत
तेरे बिना हर सांस बुरी लगती है।
आ अब लौट भी आ तुम कही से
तेरे जाने से मेरी पहचान बुरी लगती है।
तेरा चाहना और ना चाहना खुद के बगैर
किसी के पहचान से ये आदत बुरी लगती है।
मंदिर, मस्जिद, रास्ते सब तोड़ आये हैं
तु लौट सके किसी दिन बस यही दुआ लाये हैं।
कि मैं लुटाकर सबकुछ तेरे पास आया था
इक-इक घड़ी का हिसाब लाया था।
बनकर हवा इक दिन तेरे जिस्म में समा जाऊंगा
ऐसा कोई मंजर दिल-ए- जज़्बात लाया था।
आओ तुम... अब की चली भी आओ..
कोई दिल उम्र भर सफर में आओ।।
©Deepak Kumar
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