जब बोए है पेड़ बबुल के तो काँटों से चुभन क्यों?
जब अपने गिरेवान है मैले तो दुसरो पर कीचड़ क्यों?
सवार ना सके खुद के तिनके, तो औरो से जलन क्यों?
है रीत यही समाज की, दुसरो को सिखाते संस्कार क्यों?
ना जाने क्यूँ लगाते है झूठा-सच इल्जाम दूसरों पर,
ख़ुद ना मानते ग़लती कभी, सज़ा पाने में शर्म क्यों?
आधी ज़िन्दगी बीत जाती हैं औरों के इशारों पर,
जब चुना है हमनें ख़ुद ये सफर तो आँखों में आँसू क्यों?
♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1080 #collabwithकोराकाग़ज़
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