ज़िंदगी अत्यंत कोमल एहसास है ज़िंदगी, नाकामयाबियों | हिंदी कविता

"ज़िंदगी अत्यंत कोमल एहसास है ज़िंदगी, नाकामयाबियों और कामयाबियों की साज़ है ज़िंदगी, रोशनी जहाँ बेपरवाह होती है, अँधेरों से खेलती अंजान है ज़िंदगी। टूटती दीवार हो या भँवर में मान, हौसलों की उड़ान हो या दहसत में जान, रुख़ बदलती हर साँस है ज़िंदगी, उलझनों में सुलझती इक तान है ज़िंदगी। पूछती बहुत है सवाल ये, रोकती बहुत है राह ये, अठखेलियाँ, पहेलियाँ, ना जाने क्या-क्या अंजाम है लिखती, फिर मुस्कुरा के जो हाथ थाम लेती, और देती है आस हर बार ये ज़िंदगी। ©Rajesh Vikram Singh"

 ज़िंदगी

अत्यंत कोमल एहसास है ज़िंदगी,
नाकामयाबियों और कामयाबियों 
की साज़ है ज़िंदगी,
रोशनी जहाँ बेपरवाह होती है,
अँधेरों से खेलती अंजान है ज़िंदगी।

टूटती दीवार हो या भँवर में मान,
हौसलों की उड़ान हो या 
दहसत में जान,
रुख़ बदलती हर साँस है ज़िंदगी,
उलझनों में सुलझती इक तान है ज़िंदगी।

पूछती बहुत है सवाल ये, रोकती बहुत है राह ये,
अठखेलियाँ, पहेलियाँ, ना जाने क्या-क्या 
अंजाम है लिखती,
फिर मुस्कुरा के जो हाथ थाम लेती,
और देती है आस हर बार ये ज़िंदगी।

©Rajesh Vikram Singh

ज़िंदगी अत्यंत कोमल एहसास है ज़िंदगी, नाकामयाबियों और कामयाबियों की साज़ है ज़िंदगी, रोशनी जहाँ बेपरवाह होती है, अँधेरों से खेलती अंजान है ज़िंदगी। टूटती दीवार हो या भँवर में मान, हौसलों की उड़ान हो या दहसत में जान, रुख़ बदलती हर साँस है ज़िंदगी, उलझनों में सुलझती इक तान है ज़िंदगी। पूछती बहुत है सवाल ये, रोकती बहुत है राह ये, अठखेलियाँ, पहेलियाँ, ना जाने क्या-क्या अंजाम है लिखती, फिर मुस्कुरा के जो हाथ थाम लेती, और देती है आस हर बार ये ज़िंदगी। ©Rajesh Vikram Singh

ज़िंदगी

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