अकेले-पन भी हमारा ये दूर करती है कि रख के देखो ज़र | हिंदी शायरी Video

"अकेले-पन भी हमारा ये दूर करती है कि रख के देखो ज़रा अपने पास तस्वीरें ~दिनेश कुमार सूने घरों में रहने वाले कुंदनी चेहरे कहते हैं सारी सारी रात अकेले-पन की आग जलाती है ~सहबा अख़्तर किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती है यही एक ख़राबी मिरी तन्हाई की ~फ़रहत एहसास ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है ~इफ़्तिख़ार आरिफ़ अकेले-पन का 'अज़्मी' हो भी तो एहसास कैसे हो तसलसुल से हमारी शाम-ए-तन्हाई सफ़र में है ~इस्लाम उज़्मा भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला ~अलीम मसरूर मेरे मरने पर किसी को ज्यादा फर्क नहीं होगा, बस तन्हाई रोएगी कि मेरा हमसफ़र चला गया ~अज्ञात कोसते रहते हैं अपनी जिंदगी को उम्रभर भीड़ में हंसते हैं मगर तन्हाई में रोया करते हैं ©Pandav Kumar "

अकेले-पन भी हमारा ये दूर करती है कि रख के देखो ज़रा अपने पास तस्वीरें ~दिनेश कुमार सूने घरों में रहने वाले कुंदनी चेहरे कहते हैं सारी सारी रात अकेले-पन की आग जलाती है ~सहबा अख़्तर किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती है यही एक ख़राबी मिरी तन्हाई की ~फ़रहत एहसास ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है ~इफ़्तिख़ार आरिफ़ अकेले-पन का 'अज़्मी' हो भी तो एहसास कैसे हो तसलसुल से हमारी शाम-ए-तन्हाई सफ़र में है ~इस्लाम उज़्मा भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला ~अलीम मसरूर मेरे मरने पर किसी को ज्यादा फर्क नहीं होगा, बस तन्हाई रोएगी कि मेरा हमसफ़र चला गया ~अज्ञात कोसते रहते हैं अपनी जिंदगी को उम्रभर भीड़ में हंसते हैं मगर तन्हाई में रोया करते हैं ©Pandav Kumar

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