दर्द
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दर्द के भी कई जुबां होते हैं अश्क़, चीख़ तो कभी ख़ामोशी से बयां होते हैं इसके होने से हक़ीक़त का एहसास होता है ख़ुशी की एहमियत का आभास होता है
ख़ामियों, ख़तरों और हर रहगुज़र से दर्द का वास्ता होता है खता, कभी सज़ा बनके दर्द का दाख़िला होता है दर्द की मार में ज़िंदगी का सार छुपा होता है इसके आगोश में होता है जब शक़्स तो जग साथ कहाँ होता है
जैसे-जैसे सवालों-शिक़ायतों का आग़ाज़ होता है मन पर सिर्फ़ दर्द का ही राज होता है दर्द बुरी चीज़ों, लतों और एहसासों से ही मिले, ज़रूरी नहीं ख़ुद का ख़ुश रहना भी किसी को दर्द दे जाता है
विरोध, हानि, हीनता, परिस्थिति और तन्हाई, दर्द को झलका ही जाता हैं रहता है जो दर्द को दवा समझकर संग इसके वह पार पा ही जाता है
मनीष राज
©Manish Raaj
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